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Thursday, February 22, 2018

Meri Samajh (Translation of Sadhguru's Poem 'My Yoga')

क्या शोर और क्या सन्नाटा, दोनों से ही पृथक
संतुलित हूँ मैं अब घोर उथल-पुथल में भी।
गहन दर्द में भी सुख का आभास,
एक स्थिर शान्ति है प्रेम वियोग में भी।

इस अनूठे संसार में,
जहाँ पाती न जान पाती स्वाद फलों का,
बावजूद होकर साथ भी,
न ही ले पाती सुगन्ध पुष्पों की,
खुद वो बन जाने के बाद भी।
मैं चख रहा हूँ उस बीज को उस स्त्रोत को यहाँ,
जहाँ अब पवित्र या अपवित्र दोनो भावनाएँ हैं लुप्त सी।

ओ शम्भो, ज्योंही मैंने आपको गले लगाया,
त्योंही धरती के कण मात्र को ही केन्द्र बिन्दु पाया।
घाटियाँ चोटियों में परिवर्तित हो गयीं,
और निरा भ्रम की स्थिति पूर्णतः स्पष्टत हो गयी।

अब,

मैं एक पुरूष के साथ पुरूष हूँ,
महिला के साथ महिला,
किसी भी जीव के साथ जीव हूँ,
और आत्मा के साथ एक आत्मा।
और जान गया हूँ यह कि,
हूँ आप के साथ तो परमात्मा,
बस परमात्मा।
(Tried translating the poem 'My Yoga' of #Sadhguru') 

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